साल पहले सेना से जुड़े एक बयान पर मानहानि केस में राहुल गांधी को राहत देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने पिछले हफ़्ते अपने फ़ैसले में कहा कि संविधान के तहत मिली बोलने और अभिव्यक्ति की आज़ादी में भारतीय सेना या किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ अपमानजनक बयान देने की आज़ादी शामिल नहीं है।
इसके साथ ही जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की एकल पीठ ने राहुल गांधी की याचिका खारिज कर दी। याचिका में राहुल ने लखनऊ की एक एमपी-एमएलए कोर्ट द्वारा फरवरी 2025 में जारी समन आदेश और मानहानि मामले को चुनौती दी थी। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार इसी पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निश्चित रूप से दी गई है, लेकिन यह तार्किक प्रतिबंधों के अधीन है और इसमें किसी व्यक्ति या भारतीय सेना के ख़िलाफ़ अपमानजनक बयान देने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है।’

यह मानहानि शिकायत बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन यानी बीआरओ के पूर्व निदेशक उदय शंकर श्रीवास्तव द्वारा दायर की गई थी। यह मामला फ़िलहाल लखनऊ की एक अदालत में लंबित है। शिकायत में दावा किया गया कि राहुल गांधी ने 16 दिसंबर 2022 को अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भारतीय सेना के ख़िलाफ़ अपमानजनक टिप्पणी की थी। यह टिप्पणी 9 दिसंबर 2022 को भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुई झड़प से जुड़ी थी। शिकायत के अनुसार, राहुल ने बार-बार अपमानजनक तरीक़े से कहा कि चीनी सेना अरुणाचल प्रदेश में हमारे सैनिकों को ‘पीट रही है’ और भारतीय प्रेस इस संबंध में कोई सवाल नहीं पूछेगा।
लखनऊ की अदालत ने प्रारंभिक रूप से माना था कि राहुल के बयान से भारतीय सेना और उससे जुड़े लोगों और उनके परिवारों का मनोबल कम हुआ है। इस आदेश को चुनौती देते हुए राहुल गांधी ने हाईकोर्ट का रुख किया था।
हालाँकि, कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 199(1) के तहत अपराध से प्रभावित कोई भी व्यक्ति, भले ही वह सीधा पीड़ित न हो, ‘असंतुष्ट व्यक्ति’ माना जा सकता है। इस मामले में बीआरओ के एक सेवानिवृत्त निदेशक ने भारतीय सेना के ख़िलाफ़ कथित अपमानजनक टिप्पणी पर शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता ने दावा किया कि उन्हें सेना के प्रति गहरा सम्मान है और इस बयान से उन्हें ठेस पहुंची।
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को सीआरपीसी की धारा 199 के तहत शिकायत दर्ज करने का अधिकार है। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी माना कि लखनऊ की निचली अदालत ने सभी प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राहुल गांधी को आईपीसी की धारा 500 के तहत मुक़दमे का सामना करने के लिए समन जारी करने का सही निर्णय लिया था।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि राहुल गाँधी ने कथित बयान मीडिया से बातचीत के दौरान दिया था, जिससे यह साफ़ है कि उनकी मंशा थी कि उनका बयान समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो। कोर्ट ने अतिरिक्त महाधिवक्ता के उस तर्क पर भी गौर किया, जिसमें उन्होंने लाइव लॉ की एक रिपोर्ट का हवाला दिया। इस रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट के 25 अप्रैल 2025 को वीडी सावरकर के ख़िलाफ़ राहुल गांधी की कथित टिप्पणियों पर सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणियों का उल्लेख था। सुप्रीम कोर्ट ने उनके बयानों पर कड़ी आपत्ति जताई थी और उन्हें भविष्य में इस तरह के बयान देने से बचने की मौखिक चेतावनी दी थी।
कोर्ट ने यह साफ़ किया कि समन आदेश की वैधता की जाँच के दौरान इसकी खामियों और मज़बूत पक्षों पर विचार करने की ज़रूरत नहीं है, और यह काम ट्रायल कोर्ट को करना होगा। इस आधार पर कोर्ट ने राहुल गांधी की याचिका खारिज कर दी।